रविवार, 14 सितंबर 2014

185. तारा बनाम रकीबुल तथा व्यवस्था


       कुछ समय पहले कहीं ऐसा ही कुछ पढ़ा था कि "व्यक्ति विशेष" पर प्रतिक्रिया देना छोटी बात है; "घटना विशेष" पर प्रतिक्रिया देना मध्यम दर्जे की बात है, तथा "विचार विशेष" प्रतिक्रिया देना ऊँचे दर्जे की बात है
       जब इसे नहीं पढ़ा था, तब भी मैं व्यक्ति विशेष से जुड़ी बातों पर कुछ लिखने से बचता था; घटना विशेष पर कभी-कभार प्रतिक्रिया देता था, मगर उसी के बहाने एक विचार प्रस्तुत करने की कोशिश करता था और सिर्फ विचार विशेष पर लिखना मैं पसन्द करता था।
       खैर, तारा शाहदेव बनाम रंजीत उर्फ रकीबुल प्रकरण पर मुझे सिर्फ इतना कहना है कि यह हमारी आज की व्यवस्था का एक आदर्श उदाहरण है। कमोबेश सारे देश में ऐसी ही सड़ी-गली व्यवस्था कायम है, जिसमें रंजीत उर्फ रकीबुल जैसे माफिया के हमाम में सत्ताधारी तथा पुलिस-प्रशासन-न्यायपालिका के उच्चाधिकारी नंगे होकर नाचते हैं!
       दुःख तो यह देखकर होता है कि फिर भी हमारे देश का जागरुक वर्ग इस महान व्यवस्था पर कुर्बान हुए जा रहा है... किसी को इसकी सड़ान्ध नहीं आती!
       मुझे डर है कि इस मामले में कहीं ऐसा न हो जाये कि रंजीत उर्फ रकीबुल या तो बाइज्जत बरी हो जाये या मामूली सजा काटकर वापस आ जाये और दूसरी तरफ तारा शाहदेव को किसी झूठे मुकदमें में फँसाकर उसका जीना मुहाल कर दिया जाय...  

184. कोली बनाम पंढेर तथा सीबीआई


       हो सकता है, निठारी काण्ड में नौकर कोली ही दोषी हो और मालिक पंढेर निर्दोष। मगर मेरी अन्तरात्मा कहती है कि असली शिकारी मालिक पंढेर है और नौकर कोली बचे-खुचे शिकार पर गुजारा करने वाला प्राणी है!
       जैसे कि इस देश में जजों तथा सीबीआई अफसरों को छोड़कर बाकी हर कोई जानता है कि आरुषी की हत्या किसने और क्यों की, वैसे ही यहाँ भी न्यायपालिका तथा सीबीआई मिलकर मुख्य अभियुक्त को बचा रहे हैं- ऐसा मेरा सन्देह है। मेरा सन्देह तभी मिटेगा, जब नौकर कोली को एक प्रेस-कॉन्फ्रेन्स में खुलकर बोलने का मौका दिया जाय और वहाँ वह मालिक पंढेर को निर्दोष बताये!
       गौहाटी उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने अगर सीबीआई को अवैध ठहराया था, तो उन्होंने ऐसे ही यह फैसला नहीं दिया होगा। जरुर इस संस्था का जन्म किसी गलत नक्षत्र में हुआ है।
       मुझे हमेशा यही लगता है कि यह जाँच एजेन्सी मुख्य अभियुक्त को बचाना चाहती है, छोटे दोषी को फँसाती है, मामले को इतना उलझाती है कि बाद में इसका सिरा ही न मिले, मामले को तब तक लम्बा खींचती है जब तक कि लोग उसे भूलने न लगे। मुझे याद नहीं आ रहा है कि किसी बड़े मामले में इसने कभी मास्टरमाइण्ड या किंगपिन को सलाखों के पीछे तक पहुँचाया हो! शायद कुछ अपवाद भी हों, जैसे कि चारा घोटाला। मगर यह मामला भी शायद अभी खत्म नहीं है।

       वैसे दोष सिर्फ सीबीआई का नहीं है। इस सड़ी व्यवस्था में बने रहने के लिए और चारा ही क्या है? 

183. हथियार लॉबी


       फण्डा साफ है- पहले सउदी अरेबिया को हथियार बेचो; सउदी अरेबिया उन हथियारों के बड़े हिस्से को इस्लामिक स्टेट के आतंकवादियों को बेचेगा; ये आतंकवादी इन हथियारों से कोहराम मचायेंगे; और जब पानी नाक तक पहुँचता हुआ मालूम पड़ेगा, तब हम हथियार लेकर मैदाने-जंग में कूद पड़ेंगे- इन्सानीयत को बचाने के नाम पर! हथियारों की बिक्री से कमाई हुई अलग और इन्सानीयत के रक्षक की पहचान मिली अलग!
       यह खेल कोई पहला नहीं है। ओसामा बिन लादेन और उसके लोगों को फ्रीडम फाइटर बताते हुए पहले उसे बड़े पैमाने पर हथियार तथा पैसे दिये गये थे; बाद में (जब बेरोजगारी के दौर में जब वह भस्मासुर बन गया) उसे मारने के लिए फिर बड़े पैमाने पर पैसे तथा हथियार खर्च किये गये।
       अमेरिका सोचता था कि वह तो समुद्रों से घिरा देश है- उसे भला आतंकवाद से क्या खतरा? इसलिए यह खेल वह लम्बे समय से खेल रहा था। जब बिन लादेन ने उसकी खड़ी नाक पर डंक मारी, तब जाकर उसे पता चला कि आतंकवाद क्या होता है!
       जैसे जापान को परमाणु बम की विभीषिका क्या होती है, यह पता है और वह परमाणु बम नहीं बनाता है। वैसे ही अमेरिका को भी WTC हमले के बाद आतंकवादियों को पोसने का काम नहीं करना चाहिए था। मगर अमेरिका एक बेशर्म राष्ट्र है- पैसे और ताकत का भुक्खड़! वर्ल्ड ट्रेड सेण्टर पर इतने भीषण आतंकवादी हमले के बावजूद (इसके मास्टरमाइण्ड को मारने के कुछ समय बाद ही) वह फिर वही खेल खेलने लगा।
       कभी हमने सोचा कि आतंकवादियों के पास जो हथियार, गोला-बारूद, विस्फोटक होते हैं, वे कहाँ से आते हैं? क्या उनकी अपनी फैक्ट्रियाँ होती हैं? जी नहीं, उन्हें हथियार बेचते हैं अमेरिका, रूस, चीन-जैसे देश! हालाँकि आतंकवाद के हल्के-फुल्के दो-चार दंश इन्हें भी झेलने पड़ते हैं, मगर हथियार सेक्टर से मुनाफा इतना है कि इन दंशों को झेला जा सकता है। आखिर मरती तो आम जनता ही है! कौन-सा राजनेता मर रहा है!  
       कुल मिलाकर, इन तथाकथित सभ्य एवं विकसित देशों की हथियार लॉबी बहुत ही ताकतवर होती है, कोई भी सरकार उनके खिलाफ नहीं जा सकती; और हथियारों, गोला-बारूद तथा विस्फोटकों का मार्केट बनाये रखने के ये देश ही पहले आतंकवादियों को जन्म देते हैं, पालते-पोसते हैं, उन्हें रक्तपिपासु बनाते हैं और फिर अन्त में मैदान में उतरकर उनमें से कुछ को मारते भी हैं।

       अब सोचते रहिये कि असली आतंकवादी कौन है...  

182. काम के घण्टे

(करीब महीने भर से लिखना बन्द था। इस दौरान कई विचार दिमाग में आये और निकल गये, जो बच गये, उन्हें एक ही बैठकी में लिखे डाल रहा हूँ।)

       अरे काहे को 12-14 और 15-16 घण्टे काम!
मेरा बस चले, तो 6 घण्टे से ज्यादा काम करने वालों पर मैं जुर्माना लगा दूँ!
दिन में सिर्फ छह घण्टे काम करो और बाकी समय अपने परिजनों, नाते-रिश्तेदारों, दोस्त-यारों के साथ बिताओ; मैदान में खेलने जाओ, पार्क-जंगल में टहलने जाओ, पुस्तकालय जाओ, नहीं है कोई नाटक-कवि सम्मेलन-चित्रकला प्रदर्शनी, तो सिनेमा हॉल ही जाओ; नहीं जाना कहीं, तो घर में किताब पढ़ो, गाने सुनो, कम्प्यूटर-टीवी पर समय बिताओ... कहने का कात्पर्य कुछ भी करो, मगर खबरदार जो दफ्तर-फैक्ट्री में छह घण्टे से ज्यादा समय बिताया तो! एक बार वहाँ से निकलने के बाद वहाँ का जिक्र भी बन्द!
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क्यों जिक्र होता है इन 12-14 और 15-16 घण्टे काम का? ताकि लोग बीमार पड़े। रक्तचाप, मधुमेह, तनाव का शिकार बने। फिर शुरु हो दवाईयों पर जीने का दौर। दवाईयाँ भी ऐसी, जो बीमारियों का ईलाज न करे- बस लोगों को जिन्दा रखे- काम करते रहने के लायक रखे! दवाईयाँ कौन बना रहा है? बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ। इनका उद्देश्य क्या है? समाजसेवा? लोगों का स्वास्थ्य?? पागल ही कोई ऐसा सोचेगा। इनका उद्देश्य है- ज्यादा-से-ज्यादा मुनाफा! इन कम्पनियों की अर्थव्यवस्था इतनी विशाल होती है, इनकी लॉबी इतनी ताकतवर होती है कि लचर व्यवस्था तथा गँवार जनता वाले देशों के शासकों-प्रशासकों-न्यायाधीशों-मीडियाधीशों को ये चुटकियों में खरीद लेती हैं!
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जिस देश में जनसंख्या ज्यादा हो, वहाँ की कार्य-संस्कृति अलग होनी चाहिए कम जनसंख्या वाले देशों की कार्य-संस्कृति से। यहाँ वेतन कम होना चाहिए, ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को रोजगार मिलना चाहिए, दो-तीन या चार शिफ्टों में काम होना चाहिए और जरुरत पड़ने पर रिटायरमेण्ट की उम्र घटानी चाहिए।
मगर यहाँ तो सब उल्टा हो रहा है- वेतन हद से ज्यादा दो, एक ही आदमी से दो-तीन आदमी का काम लो, सुबह से रात तक एक ही आदमी काम करे (शिफ्ट नहीं), और रिटायरमेण्ट की उम्र 60 से ज्यादा बढ़ा दो!
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